सिर्फ़ दो कदम साथ -साथ चले,
लगाकर रखा मुझको पलभर गले,
फ़िर छोड़ गए सोता मुझे पेड़ों तले,
जब मन में थे मेरे कई सपने पले।
तुमसे मिलकर सफर जब हमने शुरू किया था,
अपना सबकुछ छोड़कर तुम्हारा साथ दिया था।
अपने तो छुट चुके हैं अब तुम भी छोड़ गए हो,
अनजाने शहर में अकेला छोड़ मुंह मोड़ गए हो।
अब घर लौटूं कैसे रास्ता आंसुओं से भरा है,
कहाँ जाऊं क्या करूँ मन डरा-डरा है।
लाखों में एक तेरा ही वो मासूम चेहरा था,
असलियत देख न सके न जाने कैसा कोहरा था।
जरा सा भी वक्त न दिया तुमने मुझको सोचने का,
खेल जीत चले गए देकर ईनाम मुझे हार जाने का।
-बौबी बावरा
1 टिप्पणी:
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।
‘…हम चुप है किसी की खुशी के लिये
और वो सोचते है के दिल हमारा दुखता नही’’
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
मुझे आप के अमूल्य सुझावों की ज़रूरत पड़ती रहेगी.
...रवि
www.meripatrika.co.cc/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
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