कभी रोते कभी हँसते
रुकते कभी चलते
उठते कभी गिरते
निभाया था
क्या मालूम था
कि इस तरह
जीवन डगर में एक और चीज है
हल्का कभी भारी सा
उठाना पड़ता है
सभी को
आलावा इसके नही कोई रास्ता
तभी तो जीने के लिए
कुछ पाने के लिए
गले लगना पड़ता है
कभी निराश करता
कभी सुफल बरसाता
एक चीज ये भी है
जिसने स्वीकारा
वो पार पाया
करना नही कभी इंकार
तुझको मेरी कसम है
बेशक
छूटता है पसीना
मगर यही है जीना
उठा लो सोच कर कि
एक ही तो लफ्ज है बस ये
उत्तरदायित्व।
-बौबी बावरा
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