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मंगलवार, 29 जुलाई 2008

उत्तरदायित्व

कभी रोते कभी हँसते
रुकते कभी चलते
उठते कभी गिरते
निभाया था
क्या मालूम था
कि इस तरह
जीवन डगर में एक और चीज है
हल्का कभी भारी सा
उठाना पड़ता है
सभी को
आलावा इसके नही कोई रास्ता
तभी तो जीने के लिए
कुछ पाने के लिए
गले लगना पड़ता है
कभी निराश करता
कभी सुफल बरसाता
एक चीज ये भी है
जिसने स्वीकारा
वो पार पाया
करना नही कभी इंकार
तुझको मेरी कसम है
बेशक
छूटता है पसीना
मगर यही है जीना
उठा लो सोच कर कि
एक ही तो लफ्ज है बस ये
उत्तरदायित्व।

-बौबी बावरा

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