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गुरुवार, 28 अगस्त 2008

तुम्हारी लगाई आग में

फूल तो खिल जायेंगे फ़िर से बहार आने पर बाग़ में,
पर मेरा तो सबकुछ राख हुआ तुम्हारी लगाई आग में।

गुजर बसर कर रहा था मैं भले तन्हाई में,
तुमने ही मुझको छेड़ा था आकर मेरी तरूणाई में।
खेला मेरे सपनों को बदल कर बुलबलों के झाग में,
और मेरा सबकुछ राख हुआ तुम्हारी लगाई आग में।
दिन मुझे याद है जब दिल तोड़ा था तुमने जुलाई में,
ढोते फिर रहे हैं जिंदगी तब से तेरी बेवफाई में।
फिर से क्यूँ करते इजाफा दामन पे लगे अपने दाग में,
कि बची हुई राख जला रहे फिर से क्यों आग में।
चिंगारी को आग बनाने वाले तुम क्या कभी नहीं जलोगे,
अंगारों के घूँसे और लपटों की चाबुक तुम भी तो सहोगे।
रोओगे तुम उस दिन जब होगा फ़ैसला मेरे भाग में,
भले आज मेरा सबकुछ राख हुआ तुम्हारी लगाई आग में।

-बौबी बावरा








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