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सोमवार, 21 जुलाई 2008

मंगरू का विचार संसार

मंगरू झाड़ी के अंदर शौच पर बैठा था
बगल में रखा पानी भरा लोटा था
दो बीड़ी फूंक चुका पर काम न बना
घरवाली को मना किया ऐसे पकवान न बना
खैर झाड़ी के अंदर था सुकून का समंदर
दुनिया से अलग एक अभेद्ध पुरंदर
बैठा हो जैसा किसी टाइम मशीन पर
विचारों ने शुरु की कुश्ती दिमागी जमीन पर
जीवंत मुद्दा पर विचारों के पंछी लगे पंख फरफराने
एटमी उर्जा से बिदके विरोधी हाथी लगे चिघाड़ने
एटमी करार या कोई है महा तकरार
तिनके तिनके को तरसे मनमोहन सरकार
अमेरिका नाम सुनते ही लेफ्टी भुत सरके
नही चाहिए उन्हें एटमी उर्जा नाचेंगे ढिबरी धरके
एक एक मत पाने को हो गया घमासान
कमाई का एक रास्ता मिल गया आसान
छुपके थोड़ा रूठे रहो रेट बढ़ जाएगा
पचीस करोड़ से आगे वेट बढ़ जाएगा
मज़बूरी सरकार बचाने की खर्च तो होगा ही
जनता की कटेगी जेब तब दर्द तो होगा ही
धनकुबेरों के पैसे मत खरीदने में लगेंगे
पदों के मोल मलाई के मेले भी लगेंगे
दागियों को मौका है अपना पाप ढकने का
सरकार के समर्थन में अपना मत रखने का
कैसे दिन देख रही सरकार ये बेचारी
कैदियों और आरोपियों से दोस्ती की लाचारी
लेफ्टी और विरोधियों से क्या मगजमारी
काली भैंस को बीन की धुन लगे कैसे प्यारी
कैसे कैसे बैल जोते तुमने देश के बैलगाडी में
सड़क पर एक बैल चले तो दुसरा खींचे झाड़ी में
झाड़ी में तो मंगरू भी बैठा है जानकर मंगरू ठिठका
विचारों का घोड़ा हिनहिनाकर अब यहाँ पर अटका
शौच शौच में सोच विचार मुफ्त में दुनिया दर्शन
जो चाहो जैसा चाहो खूब करो ख्याली मर्दन।

-बौबी बावरा




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