Pages

यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 23 जुलाई 2008

सरकार की मंगलवार

लो बच गई है अब सरकार मेरे यार
विकासवादियों की हुई जीत धमाकेदार
हाँ या ना का ये दंगल था बड़ा मजेदार
खास बड़ा था सरकार के लिए दिन मंगलवार

मतान्धता के नशे में वे होकर चूर
कुर्सी पर नजर गड़ाये पजाते हुए खुर
नकली सींगों में मलकर अहंकारी सुरूर
टकराकर ऐसे लुढ़के के अब उठने से मजबूर

रिश्वत का इल्जाम लगाया धोती गीली होती देख
हर फार्मूला पैंतरा आजमाया पलट पलट पासा फेंक
अपना ही तमाशा बनाया अवसरवादिता की रोटी सेक
लटक गए मुंह सबके सामने अपनी हार होती देख

खिंसियानी बिल्ली जायेगी कहाँ खम्भा नोचने
वजह अपनी हार का सरकार पर थोपने
आते रहेंगे सोच सोच कर फ़िर से भौंकने
अमेरिका से एटमी डील को होने से रोकने

ये विरोधी हैं अपने ही लक्ष्य से भटके
बौराए अपने ही विचारधारा में अटके
ना ख़ुद बढ़ेंगे ना बढ़ने देंगे हवा में हैं लटके
बदलती अर्थव्यवस्था से कब तक रहेंगे कटके

जनता बुद्धिमान ना सही पर बुद्धू भी नहीं
एटमी डील का कखहरा भले जानते नहीं
पर इतना पता है की सरकार इतनी मुरख नहीं
गरीबी भुखमरी के आगे डील इतना बुरा नहीं

परमाणु शक्ति से उर्जा लेना सीखना होगा
मानसून आधारित कृषि को इससे सींचना होगा
कृषि क्रान्ति से गरीबी को जीतना होगा
विश्व पटल पर भारत का नाम लिखना ही होगा.

-बौबी बावरा

कोई टिप्पणी नहीं: