अँधेरा बढने के साथ साथ
विरह वेदना की कसक उठती है
तुम्हें याद मैं करती हूँ
चेहरे पर खामोशी लिए
एक दीया जलाती हूँ
फ़िर जलती लौ को निहारती हूँ
तुम्हें याद करते करते
सब कुछ भूल सी जाती हूँ
तन्हाई जाती है और पसर
हटती जलते लौ से है जब नज़र
चारों तरफ़ असंख्य लौ जाते हैं ठहर
वेदना जलती बुझती है सौ के सौ में
प्रिय तुम नजर आते हो हर लौ में
-बौबी बावरा
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